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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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जल करि अन्य जीवनका अनेक प्रकार छिन मात्र मैं रोग दूर होइ है बहुरि क्षुधा तृषा करि पीड़ित प्रानीको शुद्ध अन्न जल दीनै । भावार्थ--अन्न तौ ऐसा त्रस जीव अरु हरित काय कर रहित यथा जोग्य अन्न रोटी अर छान्या जलसौ पोखिये ताका ‘फल करि क्षुधा करि रहित देवपद पावै । अरु मनुष्य होइ तौ जुगलिया तीर्थकर चक्रवर्ति आदि पदवी धारक महा भोग सामग्री सहित होय बहुर मरते जीवकू छुड़ाइये वा आप मारना छोड़िये ताका फल करि महा पराक्रमी वीर्यके धारी देव मनुष्य होइ । ताको कोई शंका नाहीं ऐसा निरभय पद पावै । बहुरि आप पट्टा होय तो औरको सिखाइये, तत्वोपदेश देय निनमारग विथै लगाइये । आप शास्त्र लिखिये वा सोधिये व काव्यशास्त्रको टीका बनाइये अथवा धन खरच नाना प्रकारकै जैन शास्त्र लिखाइये । अरु धर्मात्मा पुरुषनको दीजिये । ये ज्ञान दान सर्वोत्कृष्ट है। याका फल भी ज्ञान है । सो ज्ञान दानका प्रभाव करि मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान विना अभ्यास किये ऐसी फुरै है पाछै शीव ही केवलज्ञान उपनै है । बहुरि परनै सुखी किया आपनै जगत सुखदाई परनवै । बहुरि गुरादिककी विनय किया आप जगत करि विनय जोग्य है । अरु भगवानके चमर क्षत्र सिंहासन वादिर चंदोवा झारी रकेवी आदि उपकरन चहोड़े । तौ भी ऐसा पद पावै है सो आपके ऊपर क्षत्र फिर चमर ढुरै है । वा सिंहासन ऊपर वैठि देव विद्याधरोंका अधिपति होइ । बहुरि निनमंदिरका करावां अरि भाधानको पूना कर आप भी त्रैलोक्य पूज्य पद पा है।