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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
आदिका रोकना ५ । ऐसे सत्यानुव्रतके अतीचार ५ मिथ्योपदेश कहिये झूठका उपदेश देना १ रह्यो व्याख्यान कहिये काहूकी गुप्त बात प्रकाश दैना २ कूटलेख क्रिया कहिये झूठा खातादि लिखना ३ न्यासापहारा कहिये काहूकी घरी वस्तु मैटना ४ साकार मंत्र भेद कहिये अन्य पुरुषका मुखादिकका चिन्ह देखि ताक अभिप्राय जान प्रकाश दैना ५ । अबै अचोर्य अनुव्रतके अतीचार पांच । स्तेन प्रयोग कहिये चोरीका उपाइ बताइ देना १ तदाहृतादान कहिये चोरनका हरचा माल मोल लेना २ अरु विरुद्ध राज्यातिक्रम कहिये हासलका चुरावना ३ हीनाधिकमानोन्मान कहिये घाटि दैना वाड़ि लैना ४ प्रतिरूपक व्यवहार कहिये बाढ़ मोल वस्तुमै घाट मोली वस्तु मिलावना ५ । ऐसे ब्रह्मचर्य अनुव्रत के पांच अतीचार । पर विवाह करन कहिये पराया विवाह करावना १ इत्वरिका परगृहीता गमन कहिये व्यभिचारनी पराई स्त्री सुहागिन ताके विषै गमन करना २ इत्वरिका अपर गृहीता गमन कहिये खाविंद रहित स्त्री ता विषै गनम करना ३. अनंग क्रीड़ा कहिये हस्तस्पर्शादिकर क्रीड़ा करना ४ काम तीब्राभिनिवेश कहिये कामका तीव्र परिणाम करना । अवै परिगृह के - विशेष कहै है । तथा और भी कहिये है । अति वाहन कहिये 1 मनुष्य पशु आदिको अधिक गमन करावना १ अति संग्रह कहिये वस्तुनका संग्रह करना २ अति भारारोपण कहिये लालच करि अति बोझा लादना ३ अति लोभ कहिये अति लोभ करना गये धनका लोभ करना । तथा और प्रकार भी कहै है । क्षेत्र वास्तु - कहिये गांव खेत हाट खेली आदि १ हिरन्य सुवर्ण कहिये रोकड़