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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
द्रव्य उधार दै नाहीं वा कोयलाकी भट्ठी करावै नाहीं वा दारुकी भट्ठी करावै नाहीं वा सोरा कहिये दारु जाकौ करावै नाहीं वा कोइला वा मदिरा वा सोरा को करनेवालौ को बननै नाहीं। बहुर ऊंट घोड़ा भैंसा बलद गधा गाड़ी बहल कुदाड़ी बसूला भाडै दै नांही वा आप भाड़ी देय वहावै नाहीं । वा ताकै वहावनैवाले पुरुषकू उधार द्रव्य दे नाहीं या विषै महत् पाप है। जा कार्य कारि प्रानी दुःखी होई वा विरोधो जाई ऐसा कार्य को धरमात्मा पुरुष कैसे करै । जीवहिंसा उपरांत और संसार विषै पाप नाहीं तातै सर्व प्रकार त्यननौ जोग्य है। अर ताकू द्रव्य भी उधार दै नाहीं और शास्त्र का व्यापार तनै अरु शास्त्र के व्यापारीकू उधार भी दै नाहीं इत्यादि खोटे किमव त ने अरु याके सेवा वाले ताकी देवा लैई को तनै और पापिनकी वस्तु मोल ले नहीं और विराना डील (शरीर) का पहिरया वस्त्र मोल लै आप पहिरै नाहीं। अपने डील (शरीर) का वस्त्र और कुं वैचै नहीं । अरु मंगता आहि भिक्षुक दुखित जोव नान आदि भिक्षुक वस्तु माग ल्याये होय ताकं मोल दै कर भी लैनां नहीं । अरु देव अरहंत गुरू निरग्रन्थ धर्म जिन प्रणीत ताके अर्थ द्रव्य चढ़ाया ताकौ निर्माल्य कहिये ताकै अंशमात्र भी ग्रहण कर नहीं या का फल नरक निगोद है । इहां प्रश्न जो ऐसा निरमाल्यका दोष कैसे कहा, भगवानकुं चढ़ा द्रव्य ऐसा निंद्य कैसे भया ताका समाधान । रे भाई ये सर्वोत्कृष्ट देव है ताकी पूजा करवे समर्थ इन्द्रादि देव भी नाहीं । अरु ताके अर्थ कोई भक्त पुरुष अनुरागकरि द्रव्य चढ़ाया पाछै अपूठा चहोड़ बाकी जाइगा वाकै द्रव्यमौ विना दिया ग्रहन करे तो वे पुरुष देव मुरू