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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
सो सर्वसू हलकीसौं हलकी तोरई है । और तामै भी हलकौ आकके फूल है, और तासूं भी हलकी परमानू है तीसूं भी हलको जाचक है । तीसूं भी हलकौ कृपण दान रहित पुरुष सो वे तो अपनौ सर्वस खोय हाथमोड़ो, अरु जाचना को दीन वचन मुखसेती भाखौ अरु विना बुलाये आपनौ घर आयौ तौ भी वाकौ दान नाहीं दीनौ । तीसौ जाचक पुरुष सौ भी हीन दान 1 करि रहित पुरुष है, और धर्मात्मा पुरुष के धर्म देख पूजा अरु दान छे । पट् आवाश्यक विषै भी ये दोय मुख्य धर्म देवपूजा अरु दान छै । बाकी चार गौण छै गुरुभक्ति १ तप २ संयम ३ स्वाध्याय ४ तातै सात ठिकाना विषै द्रव्य खरचवौ उचित है । मुनः १ अर्निका २ श्राविका ३ श्रावक ४ जिनमंदिरप्रतिष्ठा ५ तीर्थजात्रा ६ शास्त्र लिखावै ७ ए सात स्थानक जानना । सो दान देना के चार भेद है । प्रथम तौ दुखित भुखित जीवकी खबर पाइ वाके घर देवा जोग्य वस्तु पहुंचा सो तौ उत्कृष्ट दान है सो दान देना । बहुरि वाकूं - अपने घर बुलाई कर दान देना सो ए मध्यमदान है । बहुरि अपनौ काम चाकरी कराय दान देना सो ये अधम दान है । और कोई प्रकार धर्म विषै द्रव्य नाहीं खर है अरु तृष्णाके वशीभूत हुवा द्रव्य कमाई कमाई इकट्ठा ही किया चाहे है तौ वह पुरुष मरकै सर्प होय है । पाछै परम्परा नरक जाई है निगोद जाइ हैं । ता विषै नाना प्रकारके भेदन मारन ताडन सूलारोपन आदि तौ नरकके दुख अरु मन कान आँख नाक जिल्हा कौ अभाव है जाके, अरु स्पर्श इन्द्र द्वारा एक अक्षर के अनंतवै भाग ज्ञान बाकी रहै है । ता
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हैं।