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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
नृत्य ९ ब्रह्मचर्य १० श्नान ११ भूषण १२ वस्त्रादि १३ वाहन १४ सेन १५ आसन १६ सचित १७ आदि वस्तु संख्या ऐसा जानना। आगै अतिथि संविभागका स्वरूप कहिये है। विना बुलाया तीन प्रकारके पात्र वा दुखित अपनै वारनै आवै अनुराग कर दान दे सो पात्रनै तौ भक्ति करि दै। अरु दुखित जीवन अनुकंपा कर दै । सो दातारके सात गुण सहित दे अरु मुन्पाने नवधाभक्ति कर दे। ताको व्योरौ नवधाभक्तिका नाम प्रतिग्रहन है। ऊचौ स्थान १ पादोदक २ अर्चन ३ चरण धोना ४ मनशुद्धि ५ वचनशुद्धि ६ कायशुद्धि ७ एषणाशुद्धि ८ शुद्धअ हार देना ९ ऐसा जानना और भी दान दे। मुन्यानै कमंडल पिछी पुस्तक वा औषधि वस्तका देई । अरु आर्जिका श्रावकाने पांच तो वे ही अरु वस्त्र देई । अरु दुखित जीवने वस्त्र औषधि
आहार आदि देई । अरु अभय दान भी देइ और जिन मंदिर विषै नाना प्रकारके उपकरन चहोंडै पूजा करै वा शास्त्र लिखाइ धर्मात्माज्ञानी पुरुषनै देइ । अरु बंदना पूजा करावे, तीर्थ जात्रा वि. द्रव्य खरचै । अरु न्याइपूर्वक द्रव्य पैदा करै ताका तीन भाग करै । तीमै एक भाग धर्म- निमित्त खर्चे, अरु एक भाग भोजनके अर्थ कुटुम्बनै सौपै, अरु एक भाग संचय करै सो तौ उत्कृष्ट दातार जानना । अरु एक भाग तौ दान अर्थि तीन भाग संचय करे सो जघन्य त्यागी है। अरु जो दशौ भाग धर्म में ख. नाहीं । तौ वाकौ घर मसान समान है। मसानविर्षे भी अनेक प्रकारके जीव हौमे जाइ हैं । अरु गृहस्थका चूला विषै नाना प्रकारके जीव दग्ध होंय है। अथवा कैसा है वह पुरुष