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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
दे अथवा पूर्व कहै जे सर्व वस्तुका सौदा करै अरु नाना प्रकारकी खोटी वस्तु चतुराई व अकल औराकुं सिखावै अथवा राजकथा वा चोरकथा स्त्रीकथा देशकथा इत्यादि नाना प्रकारकी विकथाका उपदेश देई ऐसे पापोदेशका स्वरूप जानना । आगै दुःश्रुतिका स्वरूप कहिये है। दुःश्रुत कहिये है खोटी कथाका सुनना अंगारादिक गीत राग बानित्रका सुनना। काम उत्पादन कथा भोजन चोर राज देश स्त्री वेश्या नृत्यकारणीकी कथा वा रार संग्राम जुद्ध भोगकी कथा स्त्रीका रूप हावभाव कटाक्षकी कथा, जोतिष वैद्यक मंत्र तंत्र जंत्र म्वरोदयकी कथा. ख्याल तमाशा इत्यादि पापनै कारन ताकी कथाका सुनना ताको दुःश्रुति श्रवन कहिये है । इत्यादि ये विना प्रयोजन महापाप ताको अनर्थदंड कहिये है । ताका त्याग करै ताको अनर्थदंड त्याग व्रत कहिये ऐसे तीन गुणवृतका स्वरूप जानना ।
आगै सामायिक व्रत को स्वरूप कहिये है सो अथोन सवार मध्यान विर्षे त्रैकाल ( तीन वेर ) सामायिक करै । आठ चौदश प्रोषध करै ताका स्वरूप आगै कहैगे । आगै भोगोपभोग व्रतका स्वरूप कहा है । सो एकवार भोगवामें आवै सो भोग जैसे भोजनादि । अरु वेही वस्तु बार बार भोगिये जैसे स्त्री वस्त्र वा गहना आदि ताकौ उपभोग कहिये । नित्तवार चार पहर को प्रमान करले । प्रभात प्रमान करै सो तौ अथॉननै याद करले अरु अथौनका प्रमान कीनौ प्रभात याद करले । याका विशेष भेद ताका नाम सत्तरा नेम है ताका व्योरा भोजन १ षट रस २ जलपान ३ कुंकुमादि ४ लेपन ५ पुप्प ६ ताम्बूल ७ गीत ८