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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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अरु अग्निनै प्रजाले छै । अरु वीजनासौ पवन करवौ करै । वनस्पतीनै शस्त्रकरि छैद नाखै हाथसौ तोडिनाखै ऐसे हिंसादानका स्वरूप जानना । आगै प्रमाद चर्याको स्वरूप कहिये है। प्रमाद लिये धरती ऊपर बिना प्रयोजन आम्हां साम्हां फिरवौ करे, कहीनै हालै कहीने चालै, कठैनै ही वा विना देख्या बैठ जाय, विना देखें वस्तु उठाय लेय वा मेल देय इत्यादि प्रमादचर्याका स्वरूप जानना । आगै पापोदेशका स्वरूप जानना ऐसा उपदेश देना ही फलाना तूं हवेली कराई वा कुवा, वावड़ी, तलाव खनाय वा खेत बांध थोरै खेती निदानी आयो है, तीको निहाउ वा थारौ खेत सूकै छै जाकुं जलि करि सीचवा, थारी बेटी कुंवारी है ताको व्याह करि वा थारौ बैटा कुंबारा छै ताकू व्याह करवा, बजार विषै. नीबू, आला, काकड़ी, खरबूजा आदि जे फल विकै छै सो तू मोल ल्याव अरु गाजर, कंदमूल, सकलकंद, आदि वजारमैं विकै छै सो तूं मोल ल्याव वा मैथी, वथुवौ, गादल इत्यादि बाजारमैं विकै छै सो मोल ल्याव । तोरई, करेला, ठीठसा आदि मोल मगाई वाकी उपदेश देई अर अनि ईधन जल घृत लून मंगाय वाका उपदेश देय, वा चूल्यो बालवांको, आंगन लिपायवांकी, गारा गोवर करवाका उपदेश देइ । कपड़ा धुवावाका, स्नान करावाका, स्त्रीके मस्तकका केश सवांरवाका, खाट ताबड़े नषायवाका, कपड़ा वा सेन आदि काड़वांका, दीवो जोवाकौ, वींध्यो सूंल्यो नान मंगावेका वा घृत तैल गुड़ खांड़ नाज आदि वस्तु भांडार राखवा का उपदेश देई। वा दान तप शील संजम सौ सु आखड़ी आदि धर्म कार्य विर्षे कोई पुरुष लागै ताकू मनै करै ऐसा उपदेश