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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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वीधी वस्तूका भक्षण अर दही गुर मिलाइ खानेको वा जलेबी इत्यादिमें त्रस जीव वा निगोद उपनै है तातै याका त्याग करना। अरु नैनूकी दो घड़ीकी मर्यादा है वा कोई आचार्य शास्त्र विर्षे चार घड़ीकी मर्यादा भी लिख हैं तातै दोय घड़ी वा चार घड़ी पाछै जीव उपजै है । परन्तु ये भअक्ष हैं तातै तुरतका भी विलोया खाना उचित है नाही। याका खावा विष मास कैसा दोष होय है या विषै राग भाव होवै है और बैंगन अरु साधारन वनस्पति अरु घोंसका वरा अरु पाला अथ गाडा मृत्तका अरु विष अरु रात्रि भोजनका भक्षन तजै । पांच उदम्बर अरु बैंगण ताका भी भक्षण नहीं करै । याका खाया सूं रोग भी बहुत उपजै है । और चलित रस ताको व्यौरौ वासी रसोई मर्यादा उपरांत आटा घी तेल मिठाईका भक्षन तनै अरु आम व मेवा आदि जाका रस चलि गया होई ताका भक्षन नाहीं करै है। और बड़े वेर वा जारियाका वेर हाथ सू फोड़ा विना अरु नेत्र सौ विना देख आप ही मुखमें न देय । ये काना बहुत होय है ता विषै लट होइ है । अरु गलित आम विष भी सूतका तार सरीखा लट होय है । सो विना देख्या चूसे नाही। अरु काना · सांठा वा कानी ककडी इत्यादि काना फूल तामै लट उपजै है ताका भक्षन तजै और सियालेमें साग आदि हरित काय ता विषे वादलाका निमित्त करि लटां उपनै हैं ताका भक्षन तनौ अरु कलीदा तरबूज आदि बड़ा फल याका घात विर्षे निर्दईपना विशेष उपजै है । मलीन चित्त होय है अरु याकौ हस्त विषै छुरियासू विदारे तब बड़ा त्रस जीवां कीसी हिंसा किये की सो परनाम विषै प्रतिभाषे है । तातै