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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
बड़ा फलका दोष विशेष है । अरु केला ताका भक्षण तजै या खाया राग बहुत उपनै है । अरु फूल जात वा नरम हरत काय जाकी छालि कहिये छोटा जाड़ा होय वा बटके इटै वा सांटा आदिकी ये लीवा कांकरी आदि ताकी लकीरी अरु निंबू दाझौं आदि ताकी जाली ये गूढ होय याका व्यक्रपना नाहीं भासै ताका भक्षण तजै । भावार्थ ऐसी वनस्पति विषै निगोद हो है । इत्यादि जीव हरित काय विषै निगोद होय वा जा विषे त्रस जीव अरु दुष्ट चित्त अत्यंत होय है । अरु अत्यंत गदला परनामा करि पाप करि लिप्त ऐसा बहुत होय ते वनस्पति सर्व ही तननी उचित है ।
और आगै ऐसे व्यापारादि नाही करै है ताका व्यौरा-लोह हाड़ चाम केश हींग सीघड़ाका घत तेल तिल ताक हलदी साजी लोह रांग फिटकड़ी कसुंभा नील साबणा लाख विष सहद पसारीपनाका सर्व ही व्यापार निषिध है । अर हरित कायका व्योपार ताका अर वीधा अन्न आदि जा विर्षे त्रस जीवाका घात बहुत होई ऐसा सर्व ही व्यापार तनै । और चंडाल कसाई धोवी लुहार ढेड ड्रम भील कोरी वागरी साढना कुंजरा नीलगर ठग चोर पालीगर याका बनन कहिये वाकों वस्तु मोल वेंचै भी नाही, वाकी वस्तु मोल लैनीका भी त्याग करै, वा हलवाईगरीका किसब तनै । वा धोबी पास धुवाई वा छीपा नीलगर पास रंगाया कपड़ा बैचना ताकू तनै वा खेती करावै नाही, खांड पिड़ावै नाहीं वा खेतीका करावा वालेनै उधार दै नाहीं वा चूना खैरकी मट्टी आदि घरै करावै नाहीं और भाड़ विष बस्तु सिकावै नाहीं। वा भड़भूना वा लुहार लाकू