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लेखन का प्रयोजन
प्र.156 चैत्यवंदन भाष्य की रचना का क्या प्रयोजन है ? उ. चैत्य पूजक और दर्शक को सम्यक् प्रकार से चैत्य विधि का ज्ञान करवाना, जिससे आराधक गण परमात्मा की आशातना से बचें और जिनाज्ञा का पालन कर नये पुण्य का बंध करे और पूर्व बधित कर्मों की निर्जरा कर मोक्ष को प्राप्त करे ।
प्र.157 प्रयोजन कितने प्रकार का होता है ?
दो प्रकार का 1. कर्ता का प्रयोजन 2. श्रोता का प्रयोजन ।
उ.
प्र. 158 कर्ता का प्रयोजन कितने प्रकार का होता है ?
दो प्रकार का - 1. अनन्तर प्रयोजन 2. परम्पर प्रयोजन
उ.
प्र. 159 कर्ता का अनन्तर प्रयोजन क्या है ?
उ.
कर्ता का ‘अनन्तर (तात्कालिक, निकट) प्रयोजन शिष्यों को तत्सम्बन्धी (चैत्यवंदन) ज्ञान करवाना और स्वाध्याय के द्वारा सम्यग्दर्शन को निर्मल और पुष्ट करना ।
: प्र. 160 कर्ता का परम्पर प्रयोजन क्या है ?
उ.
परम्पर यानि दूर का प्रयोजन । चैत्यवंदन सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त कर विधिवत् पूजन, दर्शन, वंदना, कायोत्सर्ग आदि करके कर्मों की निर्जरा करना और अंत में मोक्ष को प्राप्त करना, यह ग्रन्थ कर्ता का परम्पर प्रयोजन हैं ।
प्र. 161 श्रोता का प्रयोजन कितने प्रकार का होता है ?
उ.
दो प्रकार
1. अनन्तर प्रयोजन 2. परम्पर प्रयोजन ।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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