Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 445
________________ आहार आदि चार संज्ञा का नाशक होने से चतुरन्त हैं 1 प्र. 1507 चार दानादि धर्म से संसार का अंत कैसे होता है ? उ. उ. प्र. 1508 कौन सी भूमि तीर्थ भूमि कहलाती है ? जम्माभिसेय-निक्खमण चरणुप्पायनिव्वाणे । दियलोअ भवण मंदर नंदीसर भोम नयरेसु ॥1॥ अट्टावयमुज्जिते गयग्गपयए य धम्मचक्के य । पासरहावत्तनगं चमरूपायं च वंदामि ॥2॥ उ. प्र.1509 पन्नवणा (प्रज्ञापना) सूत्रानुसार मुक्तात्माओं का भेदोल्लेख कीजिए । दो 1. अनन्तर सिद्ध 2. परम्पर सिद्ध । आत्मा जिस समय में मोक्ष जाती है, उस समय अनन्तर सिद्ध कहलाती है । तत्पश्चात् के समयों में यही आत्मा परम्पर सिद्ध कहलाती है । प्र. 1510 आवश्यक निर्युक्ति के अनुसार सिद्धों के प्रकार बताइये ? उ. संसार सदैव आहार-विषय- परिग्रह - निद्रा नामक चार संज्ञा से बढ़ता है। दान धर्म परिग्रह संज्ञा का, शील धर्म विषय संज्ञा का, तप धर्म आहार संज्ञा का एवं भावना धर्म निद्रा संज्ञा (भाव निद्रा) का नाश करता है। इस प्रकार दानादि धर्मों से संसार के हेतुभूत आहारादि संज्ञाओं का नाश होने से संसार का अन्त होता है । +4 430 आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुत स्कन्ध अर्थात् तीर्थंकर परमात्मा की जन्म भूमि, दीक्षा कल्याणक भूमि, केवलज्ञान भूमि, निर्वाण भूमि, देवलोक के सिद्धायतन, अष्टापद, गिरनार राजपद तीर्थ, धर्म चक्र तीर्थ, श्री पार्श्वनाथ स्वामी के सर्व तीर्थ, तीर्थ भूमि कहलाती है । - ग्यारह प्रकार 1. कर्म सिद्ध 2. शिल्प सिद्ध 3. विद्या सिद्ध 4. मंत्र परिशिष्ट Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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