Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 444
________________ उ. धर्मनेतृत्व सिद्ध करने वाले चार मूल हेतु निम्न है - 1. धर्मवशीकरण 2. उत्तम धर्म प्राप्ति 3. धर्म फल योग 4. धर्म घाताभाव। प्रत्येक मूल हेतु के 4-4 और अवान्तर हेतु (गुण) है। 1. धर्मवशीकरण - विधि समासादन, निरतिचार पालन, यथोचितदान, अपेक्षाऽभाव । 2. उत्तमधर्मप्राप्ति - क्षायिक धर्मप्राप्ति, परार्थ संपादन, हीनेऽपि प्रवृत्ति, तथा भव्यत्व । 3. धर्म फल योग - सकल सौन्दर्य, प्रातिहार्य योग, उदार द्वयनुभव, तदाधिपत्य । .. 4. धर्मघाताभाव - अवन्ध्यपुण्यबीजत्व, अधिकानुपपति, पापक्षय .. भाव, अहेतुक विघातासिद्धि । ___ ललीत विस्तरा 164 प्र.1505 चक्रवर्ती के चक्र की अपेक्षा धर्म चक्र श्रेष्ठ कैसे है ? उ. चक्रवर्ती का चक्र मात्र लोक हितकारी है, जबकि विरति रूप धर्म चक्र इहलोक एवं परलोक अर्थात् दोनों लोक में हितकारी है । चक्रवर्ती का चक्र मात्र बाह्य शत्रुओं का नाश करता है, जबकि परमात्मा का विरति रूप धर्म चक्र आर्त-रौद्रध्यान, मिथ्यात्व, राग-द्वेष आदि आन्तरिक भाव शत्रुओं का नाश करता है और अंत में मोक्ष रूपी फल प्रदान करता है। इस अपेक्षा से यह श्रेष्ठ है। प्र.1506 धर्म चक्र चतुरन्त कैसे है ? उ. . सत् चारित्र धर्म, नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव नामक चार गति का .. नाशक एवं दान, शील, तप और भावना धर्म के द्वारा संसार के हेतुभूत ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी 429 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462