Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 462
________________ दिक्षाका सम सेवा एवं शिक्षा संस्कार, से जिन शासन, वित सकुल (कुशल वाटिका अभ्यर्चनादर्हतां मनः, प्रसादस्तनः समाधिश्च। तस्मादपि निःश्रेयस, अतो हि तत्पूजनं न्याय्यम्॥ उमास्वाति श्री अरिहंत परमात्मा की पूजा और अर्चना करने से मन प्रसन्नता को एवं तन समाधि को प्राप्त होता है। प्रसन्नता एवं समाधि युक्त तन-मन से मोक्ष उपलब्ध होता है। इसलिए मुमुक्षु आत्माओं को अरिहंत प्रभु की पूजा अवश्य करनी चाहिए। चैत्यवंदनतः सम्यक्, शुभो भाव प्रजायते। तस्मात् कर्मक्षयः सर्वस्तत कल्याणमश्नुते॥ हरिभद्रसूरि चैत्य अर्थात् जिन बिम्ब, जिन मंदिर को सम्यक् वंदन करने से मन में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं। शुभ भावों से समस्त कर्मों का क्षय होता है और पूर्ण कल्याण की प्राप्ति होती है। Jain Education International NAVNEET PRINTERS M.: 9825261177 D EEprary-org.de

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