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ध्रुव - यानि निश्चित्त, यहाँ लोगस्स में स्तोतव्य 24 निश्चित्त होने के कारण इसे ध्रुव स्तुति की संज्ञा दी गई है । वर्तमान में स्तुति के
पश्चात् लोगस्स बोलने का प्रचलन दिखाई नही देता है। 3. दण्ड - पांच दण्डक सूत्र (नमुत्थुणं, अरिहंत चेइयाणं, लोगस्स,
पुक्खरवरदी, सिद्धाणं-बुद्धाणं) व चार स्तुति अर्थात् एक स्तुति युगल यानि वंदनीक स्तुति (प्रथम तीन स्तुति; जिनका विषय समान होने के कारण उन्हें एक स्तुति ही कहा जाता है ।) व अनुशास्ति स्तुति (चतुर्थ स्तुति) के द्वारा परमात्मा की जो वंदना की जाती है, उसे मध्यम चैत्यवंदन कहते है। नमुत्थुणं + अरिहंत चेइयाणं. + अन्नत्थ० + 1 नवकार का कायोत्सर्ग + अध्रुव स्तुति + लोगस्सo + सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं० + अन्नत्थ. + 1 नवकार का कायोत्सर्ग + ध्रुव स्तुति + पुक्खरवरदी० + सुअस्स भगवओ करेमि. + अन्नत्थ. + एक नवकार का कायोत्सर्ग + श्रुतज्ञान स्तुति + सिद्धाणं-बुद्धाणं. + वेयावच्चगराणं० + अन्नत्थ. + एक नवकार का कायोत्सर्ग + अनुशास्ति स्तुति । परंतु वर्तमान काल में इस विधि का प्रचलन दिखाई नही देता है।
मात्र प्रतिक्रमण में देववंदन इस विधि से करते है । प्र.606 वर्तमान काल में मध्यम चैत्यवंदना के कौनसे प्रकार प्रचलन में
दिखाई देते है ? उ. निम्न प्रकार - __1. अरिहंत चेइयाणं० + अन्नत्थ० + एक नवकार का कायोत्सर्ग + अध्रुव
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पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार
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