Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 415
________________ प्र. 1434 अतिशय से क्या तात्पर्य है ? उ. दिगम्बर परम्परानुसार 18 दोषों से रहित तीर्थंकर परमात्मा 1. क्षुधा 2. तृषा 3. भय 4. रोष (क्रोध) 5. राग 6. मोह 7. चिन्ता 8. जरा 9. रोग 10. मृत्यु 11. स्वेद 12. खेद 13. मद 14. रति 15. विस्मय 16. निद्रा 17. जन्म 18. उद्वेग (अरति) । नियमसार दिगम्बर परम्परा तीर्थंकर में क्षुधा आर तृषा का अभाव मानती है। जबकि श्वेताम्बर परम्परा इनका अभाव नही मानती है । उ. ++ 401 I संस्कृत के अतिशेष का अर्थ अतिशय ही होता है । वैसे अतिशय शब्द का अर्थ - श्रेष्ठता, उत्तमता, महिमा, प्रभाव, बहुत, अत्यन्त, चमत्कार आदि होता है । और अतिशेष शब्द का अर्थ भी महिमा प्रभाव, आध्यात्मिक सामर्थ्य आदि होता है । "शेषाण्यतिक्रान्तं सातिशयम्" अर्थात् शेष का जो अतिक्रमण करता है, वह अतिशय कहलाता है । अभिधान चिंतामणि स्वोपज्ञ टीकांनुसार - "जगतोऽप्यतिशेरते तीर्थकरा एभिरित्यतिशयाः " अर्थात् जगत के समस्त जीवों से उत्कृष्ट । कांड- 1, श्लोक 48 प्र.1435 परमात्मा की वाणी के 35 अतिशयों का नामोल्लेख किजीए ? 1. संस्कारवती अलंकारादि से युक्त संस्कारित भाषा । अतिशय शब्द प्राकृत भाषा के अइसेस और संस्कृत भाषा के अतिशेष व अतिशेषक शब्द से बना है। संस्कृत मे 'क' स्वार्थ में लगने से अतिशय शब्द बनता है । अतिशेषक व अतिशेष दोनों ही समानार्थक हैं । Jain Education International - - For Personal & Private Use Only परिशिष्ट www.jainelibrary.org

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