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कहलाते है ।) 16. परमात्मा के बैठने हेतु अत्यन्त स्वच्छ स्फटिक मणि से निर्मित,
पादपीठ युक्त सिंहासन होता है। - 17. प्रत्येक दिशा में परमात्मा के मस्तक पर उपरोपरी तीन-तीन छन्,
होते है। 18.. परमात्मा के आगे महान् ऐश्वर्य की सुचक रत्नमय धर्मध्वजा चलती
है। इसे इन्द्रध्वज भी कहते है। . . 19. प्रभु के दोनों ओर दो यक्ष चामर बीजते है । 20. परमात्मा के आगे कमल पर प्रतिष्ठित, चारों ओर जिसकी किरणें
फैल रही है ऐसा धर्म का प्रकाश करने वाला धर्म-चक्र चलता है। पूर्वोक्त पांचों ही वस्तुएँ परमात्मा के विचरण के समय आकाश
में चलती है। 21. परमात्मा जहाँ ठहरते है, वहाँ विचित्र पत्र, पुष्प, छत्र, ध्वज, घंट,
पताकादि से परिवृत अशोक वृक्ष स्वतः प्रकट हो जाता है। 22. समवसरण में सिंहासन पर पूर्वाभिमुख परमात्मा स्वयं बिराजते है,
शेष तीन दिशाओं में परमात्मा के तुल्य देवकृत जिनबिम्ब होते है। किन्तु तीर्थंकर के प्रभाव से ऐसा प्रतीत होता है जैसे साक्षात्
परमात्मा ही धर्मोपदेश दे रहे हो। 23. समवसरण के रत्न, सुवर्ण और रजतमय तीनों प्राकार(गढ)
क्रमशः वैमानिक, ज्योतिष एवं भुवनपति देवों द्वारा निर्मित होते है। 24. नवनीत के समान मृदु-स्पर्श वाले नौ स्वर्ण कमल भगवान के चरण
रखने के लिए आगे-पीछे प्रदक्षिणाकार में चलते रहते है। दो पर
तो भगवान् चरण रखते तथा शेष पीछे चलते है । जो सबसे पीछे ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
परिशिष्ट
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