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2080 केशरी सिंहों जितना बल एक अष्टापद पक्षी में होता है । 10,00,000 (दस लाख) अष्टापद पक्षियों जितना बल एक बलदेव में होता है। 2 बलदेव जितना बल एक वासुदेव में होता है। 2 वासुदेव जितना बल एक चक्रवर्ती में होता है । 1,00,00,000 (एक करोड़) चक्रवर्तियों जितना बल एक नागेन्द्र में होता है। 1,00,00,000 (एक करोड़) नागेन्द्रों जितना बल एक इन्द्र में होता है। अनंत इन्द्र मिलकर परमात्मा की एक कनिष्ठिका अंगुली भी नहीं हिला
सकते है । इतना अतुल बल तीर्थंकर परमात्मा में होता है । प्र.1450 अर्हत, अरहंत, अरथांत, अरिहंत और अरूहंत शब्दों से क्या तात्पर्य
उ. . अर्हत - 'अर्हपूजायाम इंद्रनिर्मिता अतिशयवति पूजां अर्हती अर्हन् ।'
अर्हत वह पूज्य पुरूष है, जो स्वर्गलोक के इन्द्रों द्वारा पूजनीय है । जो वंदन, नमस्कारादि करने योग्य है, पूजा सत्कार करने योग्य है एवं सिद्ध गति प्राप्ति के योग्य है, वे अहंत कहलाते है ।
आवश्यक नियुक्ति गाथा 921 अरहंत - 'रहस्य अभावात् वा अरहंता ।' अ + रह अर्थात् जिनसे कोई रहस्य छिपा नहीं है। सर्वज्ञ होने के कारण जो समस्त पदार्थों को हथेली की भाँति स्पष्ट रूप से जानते, देखते है । अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मों का क्षय करके व अनंत, अद्भुत,
अप्रतिपाति, शाश्वत केवलज्ञान और केवलदर्शन से सम्पूर्ण जगत् को, ++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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