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प्र.1487 तीर्थंकर परमात्मा के जीवन काल की सर्वोत्कृष्ट शुभ प्रवृत्ति कौन
सी होती है ? उ. धर्म तीर्थ की स्थापना करना । प्र.1488 तीर्थंकर परमात्मा समवसरण में 'नमो तित्थस' कहने के पश्चात्
सिंहासन पर विराजमान क्यों होते है ? तप्पुब्विया अरहया पूइयपूआ य विणयकम्मं च । कयकिच्चो वि जह कहं कहए णमए तथा तित्थं ॥ स्वयं को तीर्थंकरत्व प्राप्त होने के बावजूद समस्त जीवों को पूजनीय वस्तु की पूजा करनी चाहिए ऐसा आदर्श प्रकट करने के लिए भगवान् संघ को नमस्कार करते है। इसमें परमात्मा का विनयगुण विद्यमान है
और संघ का माहात्म्य विद्यमान है । तीर्थं - श्रुतज्ञानं तत्पूर्विकाऽर्हता तदभ्यास प्राप्तेरिति ।' कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए क्योंकि, पूर्व तीर्थों में कृत श्रुतज्ञान की आराधना से ही तीर्थंकर नामकर्म का बन्धन हुआ है अर्थात् तीर्थों के आलम्बन से ही तीर्थंकर पद की प्राप्ति हुई है। इस हेतु से नमस्कार
करते हैं। प्र.1489. धर्म तीर्थ की स्थापना अनादि अनंत कैसे है ?
प्राणी मात्र के कल्याण हेतु तीर्थंकर परमात्मा धर्म तीर्थ की स्थापना करते है। निश्चयनय की अपेक्षा से धर्म तीर्थ सनातन शाश्वत है, अर्थात् अनादिकाल से है आर अनंतकाल तक यह धर्म तीर्थ चलता रहेगा, इस अपेक्षा से यह धर्म तीर्थ अनादि अनंत है । व्यवहार नय की अपेक्षा
से धर्म तीर्थ की स्थापना प्रत्येक तीर्थंकर के समय पुनः होती है । प्र.1490 धर्म तीर्थ में तीर्थंकर परमात्मा का समावेश क्यों नहीं है ? ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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