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यद्यपि धर्म तीर्थ की स्थापना तीर्थंकर परमात्मा स्वयं करते है, परन्तु तीर्थंकर परमात्मा की उपस्थिति में भी तीर्थ का संचालन गणधर भगवंत करते है । इसलिए धर्म तीर्थ में तीर्थंकर परमात्मा को समाविष्ट (सम्मिलित) नही किया गया है ।
उ.
प्र. 1491 क्या तीर्थंकर परमात्म धर्म तीर्थं की आराधना करते है ? हाँ करते है, इस भव में नहीं, पर पूर्व भव में तो वे किसी न किसी तीर्थ के अवलम्बन से ही परमात्म पद (तीर्थंकर) प्राप्ति की साधनाआराधना करते है | तीर्थंकर नामकर्म के उपार्जन (बंधन) में कोई न कोई धर्म तीर्थ कारण अवश्यमेव बनता है । लेकिन इस तीर्थकर के भव में भव सागर को पार करने के लिए किसी तीर्थ के अवलम्बन (सहारा, आधार) की आवश्यकता नही होती है ।
प्र. 1492 तीर्थंकर परमात्मा का जीव तीर्थ की स्थापना करने से पूर्व ( केवलज्ञान प्राप्ति से पूर्व ) उसी तीर्थंकर के भव में अन्य किसी केवली भगवंत को वंदन अथवा दर्शन आदि करते है ?
उ.
उ.
नहीं करते है, क्योंकि वे स्वयं बुद्ध होते है अन्य किसी को गुरू रूप में स्वीकार नहीं करते है । स्वयं कृत साधना-आराधना के बलबुते मोक्ष पद को प्राप्त करते है । इस भव में संसार सागर को पार करने के लिए किसी धर्म तीर्थ की आवश्यकता नही होती है। इसलिए तीर्थंकर का जीव केवली भगवंत के दर्शन, वंदन आदि नही करते है ।
प्र.1493 पद की अपेक्षा से समवसरण में उपस्थित जन समुदाय को बढ़ते
क्रम ( उच्चतर क्रम) में लिखें ।
देव / देवी < भाव श्रावक (आनंदादि श्रावक ) < साधु भगवंत चौदह
परिशिष्ट
उ. ++
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