Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 441
________________ का सौन्दर्य वैराग्यवर्धक होता है । प्र. 1497 कौन से उत्तम गुणों (विशिष्ट योग्यता ) के कारण परमात्मा को पुरुषोत्तम कहा है ? निम्न विशिष्ट योग्यता से युक्त होने से परमात्मा को पुरुषोत्तम कहा है. 1. परार्थ व्यसनिता - तीर्थंकर परमात्मा का जीव अनादिकाल से परार्थ-व्यसनी (परहितकारक ) होते है । 2. स्वार्थ गौणता - तीर्थंकर परमात्मा की दृष्टि और अभिलाषा की अपेक्षा परमार्थ (परहितार्थ ) अधिक होती है । 3. उचित क्रिया - समस्त प्रसंग व प्रवृत्तियों में वे औचित्य का पालन है । 4. अदीनभाव - दीनता से रहित । सदैव उच्च भावों में रमण करते है। 5. सफलारंभ - वे किसी भी कार्य का प्रारंभ उसके अंतिम परिणाम को समझकर करते है । अर्थात् जो कार्य पूर्णता को प्राप्त होगा, उसी कार्य को आप श्री करते है । उ. 426 6. अदृढानुशय - अपकारी के प्रति भी निबिड उपकार बुद्धि नही होती है । अर्थात् अन्य जीवों के साथ वैर-विरोध के भाव दृढ़ नही होते है। 7. कृतज्ञतास्वामिता - उपकारी के उपकारों को सदैव स्मरण रखने वाले तथा यथाशक्य प्रत्युपकारी होते है । 8. अनुपहचित्त - अभग्न चित्त वाले । अर्थात् मन सदैव हर्षोल्लास से भरा होता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only परिशिष्ट www.jainelibrary.org

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