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पूर्वधारी < अवधिज्ञानी साधु भगवंत < मनःपर्यवज्ञानी साधु भगवंत <
केवलज्ञानी < गणधर भगवंत < तीर्थंकर < धर्म तीर्थ । प्र.1494 गणधर भगवंत को केवलज्ञानी से भी महान् क्यों कहा है ?
जिन शासन में शासन के स्थापक और संचालकों की महिमा अधिक है। गणधर भगवंत संघ संचालक होने के कारण केवल ज्ञानी से पद
की अपेक्षा से महान् (उच्च) है । वृहत्कल्प सूत्र, भाष्यगाथा 1186 टीका प्र.1495 तीर्थंकर परमात्मा परम्परा से उपकारक कैसे होते है ? उ. आगम अर्थ को प्रथम कहने वाले श्री तीर्थंकर परमात्मा होते है। परमात्मा
ही योग्य जीवों को धर्म में प्रवेश कराने वाले होने से परम्परा से उपकारक है। परम्परा के उपकारक - ‘परम्परा यानि साक्षात् नही, किन्तु व्यवधान से उपकारक; अर्थात् जीवों में धर्म कल्याण की योग्यता उत्पन्न करने के कारण उपकारक है। अनुबन्ध से उपकारक - अर्थात् उनका अपना शासन जब तक चलता है, तब तक तीर्थंकर परमात्मा जीवों को धर्म-शासन द्वारा सुदेव गति,
सुमनुष्यगति वगैरह कल्याण संपादन करने वाले होते है। प्र.1496 तीर्थंकर परमात्मा के सौन्दर्य की क्या विशेषता होती है ? उ तीर्थंकर स्वरूपं सर्वेषां वैराग्यजनकं स्यात् न तु रागादिवर्धकं
चेति ।' तीर्थंकर परमात्मा का स्वरूप सर्व जीवों के लिए वैराग्यजनक होता है, रागादि बढ़ानेवाला नहीं अर्थात् जीव, परमात्मा के सौन्दर्य का
जितना रसपान करता है वह उतना अधिक वैराग्य भावों को प्राप्त करता . . . है। जहाँ अन्य जीवों का सौन्दर्य रागवर्धक होता है, वहीं तीर्थंकर परमात्मा ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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