Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 434
________________ के भावना है अथवा भावना का सामान्य अर्थ - मन के विचार, आत्मा शुभाशुभ परिणाम है । भावना को अनुप्रेक्षा भी कहते है । सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र की सुन्दर भावनाएं, मैत्री आदि भावनाएं, वैराग्य भावना, संसार जुगुप्सा, मोक्ष राग, काम विराग, आत्म निंदा, दोषगर्हा, कृतज्ञता, परार्थ- परमार्थ वृत्ति, परम जिनभक्ति, जिन-मुनि - सेवक भाव, अनायतन त्याग और जिनोक्त धर्म आदि भावनाओं का समावेश होता है। प्र. 1470 मैत्री आदि भावना में कौनसी भावनाओं को सम्मिलित किया है ? मैत्री आदि भावना के आदि पद में करूणा, प्रमोद व माध्यस्थ भावना को सम्मिलित किया है । उ. प्र.1471 वैराग्य भावना के नाम बताइये ? उ. 1. अनित्य ं 2. अशरण 3. संसार 4. एकत्व 5. अन्यत्व 6. अशुचित्व 7. आश्रव 8. संवर 9. निर्जरा 10. लोक स्वभाव 11. बोधि दुर्लभ 12. धर्म साधक अरिहंत दुर्लभ । प्र. 1472 जिन-मुनि सेवक भाव के क्या तात्पर्य है ? अरिहंत परमात्मा व पंच महाव्रतधारी मुनि ही पूजनीय व वंदनीय है । ये मेरे आराध्य देव है और मैं इनका सेवक हूँ | प्र. 1473 अनायतन का त्याग से क्या तात्पर्य है ? उ. धर्म और धर्म भाव से पतन करने वाले समस्त स्थानों व निमित्तों का त्याग करना, अनायतन त्याग है । प्र. 1474 सांव धर्म और अनाश्रव धर्म से क्या तात्पर्य है ? उ. साश्रव धर्म प्रवृत्ति रूप धर्म, साश्रव धर्म है । परमात्मा में प्रवृत्ति रूप धर्म - भूतल पर पैदल विचरण करना, धर्मोपदेश - चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 419 www.jainelibrary.org

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