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• करना, सम्यक्त्वादि धर्म का दान । प्रवृत्ति धर्म से शाता वेदनीय कर्म
का उपार्जन होता है, इसलिए यह साश्रव धर्म कहलाता है । अनाश्रव धर्म - निवृत्ति रूप धर्म, निराश्रव (अनाश्रव) धर्म कहलाता है। जैसे - हिंसा, असत्यादि एवं राग-द्वेष से पूर्णतया निवृत्त होना । निवृत्ति धर्म से ज्ञानावरणीयादि समस्त पाप कर्मों का आश्रव बन्द हो जाता
प्र.1475 महायोगात्मक धर्म से क्या तात्पर्य है ? उ. योग कई प्रकार के होते है; जैसे - इच्छादि योग । 'योग बिन्दु' शास्त्र
में अध्यात्म-भावना-ध्यान-ममता-वृत्ति संक्षय, ये पांच प्रकार के योग है। योग दृष्टि समुच्चय में मित्रा-तारा इत्यादि आठ दृष्टि स्वरूप योग है, इनमें यम नियम आदि से संप्रज्ञात-असंप्रज्ञात समाधि पर्यन्त अष्टांग योग, अद्वेष-जिज्ञास से लेकर प्रवृत्ति तक का योग एवं अखेद अनुद्वेग आदि से अनासङ्ग पर्यंत योग का समावेश किया है। 'विंशति विशिका' ग्रन्थ के 'योग विशिका' प्रकरण में स्थान-उर्ण-अर्थ-आलम्बननिरालम्बन एवं इच्छा-प्रवृत्ति-स्थैर्य-सिद्धि नामक योग का विवेचन है। इन सभी में श्रेष्ठ कोटि के योग-सामर्थ्य योग, वृत्ति संक्षय योग व परादृष्टि
है इनको महायोग धर्म कहते है। . प्र.1476 'भग' शब्द का अंतिम अर्थ 'समग्र प्रयत्न' से क्या तात्पर्य है ? उ. समग्र प्रयत्न - परम वीर्य से उत्पन्न केवली समुद्घात रूप प्रयत्न,
जो एक रात्रि आदि की महाप्रतिमाओं एवं अभिग्रह के अध्यवसाय में हेतुभूत और उन कर्मों का एक साथ क्षय करने में समर्थ प्रयत्न तथा
मन, वचन और काया का योग निरोध एवं उसके योग में प्रगट किया ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
परिशिष्ट
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