Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 417
________________ भी सरलता से समझ में आ जाये । 14. साकांक्ष - शब्दों, पदों एवं वाक्यों में परस्पर सांपेक्षत अर्थात् सङ्गतिबद्ध पदार्थों का धाराबद्ध वर्णन जिसमें असम्बद्ध पदार्थ का निरूपण नही हो 15. औचित्य पूर्ण - प्रत्येक शब्द प्रकरण, प्रस्ताव, देश, काल आदि को उचित ।.. .. - 16. तत्त्वनिष्ठ - वस्तु स्वरूप के अनुरूप प्रतिपादन ।। 17. अप्रकीर्ण प्रसूत - सम्बन्धित पदार्थों का वर्णन करने वाली, अप्रस्तुत अतिविस्तार से रहित । 18. स्वश्लाघा - पर निंदा एवं स्व प्रशंसा से रहित वाणी। 19. अभिजात्य - भूमिकानुसार विषय कहना । 20. स्निग्ध मधुर - लम्बे समय तक लगातार सुनने पर भी क्षुधा (भूख), प्यास (तृषा), थकान आदि महसुस न हो ऐसी मधुर व स्निग्ध वाग्धारा। 21. प्रशंसनीय _ - - समस्त जन-मानस द्वारा जिनवाणी की प्रशंसा, गुणकीर्तन हो । 22. अमर्मवेधी - सर्वज्ञता के प्रभाव से जीवों के मर्म (गुप्त रहस्य) भेद को जानते हुए प्रगट न करे, ऐसी मर्म अभेदी (अमर्म वेधी) वाणी । 23. उदार - महान् एवं गंभीर विषय की प्रतिपादक वाणी। 24. धर्मार्थ प्रतिबद्ध - शुद्ध धर्म के उपदेशक और सम्यग् अर्थ के 402 परिशिष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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