________________
को उत्कृष्ट चैत्यवंदन की संज्ञा दी गई है। प्र.659 अपुनर्बन्धक आदि की द्रव्य वंदना को प्रधान द्रव्य वंदना क्यों कहा
गया है? उ. अपुनर्बन्धक आदि की द्रव्य वंदना, भावों की निर्मलता और विशुद्ध
अध्यवसाय के कारण भविष्य में भाव वंदन का कारण बनती है इसलिए
इनकी वंदना, प्रधान द्रव्य वंदना कहलाती है। प्र.660 अपुनर्बन्धक आदि चारों को तीन प्रकार की वंदना होती है, फिर
सकृबन्धक आदि को क्यों नहीं ? .. उ. शास्त्रानुसार सकृद्बन्धक, मार्गाभिमुख, मार्गपतित और अन्य मिथ्यादृष्टि
जीवों में वंदन की योग्यता का अभाव होता है। प्र.661 यह कैसे प्रमाणिक होता है कि सकृर्द्धधक आदि जीवों में द्रव्य वंदना
की ही योग्यता होती है, भाव वंदना की नहीं ?, उ. यह शास्त्र प्रमाणिक कथन है क्योंकि शास्त्र के अनुसार अभव्य जीव भी.
अनंत बार नव ग्रैवेयक देव लोक में उत्पन्न होता है और नव ग्रैवेयक देव लोक में उत्पत्ति (जन्म) के लिए भागवती दीक्षा (ज़िन दीक्षा) अनिवार्य है । भागवती दीक्षा भाव पूर्वक ही होती है यह पूर्ण सत्य वचन नही है। भागवती दीक्षा भावपूर्वक ही होती है, यदि ऐसा होता तो निश्चित्त रुप से
आज तक तो हमारा मोक्षगमन अवश्यमेव हो जाता । प्र.662 अनंत बार अनादि काल से चैत्यवंदन करने के पश्चात् भी आज तक
जीव मोक्षगामी क्यों नहीं बना अर्थात् मोक्षरुपी फल (सिद्धावस्था)
को आज तक जीव क्यों नही प्राप्त कर पाया ? उ. मात्र चैत्यवंदन करने से मोक्ष की प्राप्ति नही होती है, वरन् शुद्ध अध्यवसाय
180
पांचवाँ चैत्यवंदना द्वार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org