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देववंदन विधि प्र.1316 खरतरगच्छ परम्परानुसार देववंदन विधि बताइये ?
'नमुकार-नमुत्थुण-इरि. नमुकार' नमुत्थुण-रिहंत, थुइ-लोग-सव्वथुइ-पुक्ख-थुइ-सिद्धा-वेया-थुइ-नमुत्थु-जावंति-थय जयवी । सर्वप्रथम तीन खमासमणा देने के पश्चात् संस्कृत/प्राकृत/हिन्दी/गुजराती भाषा का तीन या अधिक गाथा का चैत्यवंदन तत्पश्चात् जंकिंचिसम्पूर्ण, नमुत्थुणं इरियावहिया-तस्स उत्तरी, अन्नत्थ, 25 श्वासोश्वास प्रमाण चंदेसु निम्मलयरा तक एक लोगस्स का काउस्सग्ग, फिर प्रगट लोगस्स । तत्पश्चात् जंकिंचि सहित संस्कृत इत्यादि भाषा का एक चैत्यवंदन नमुत्थुणं-अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ (चैत्यस्तव), 8 श्वासोश्वास प्रमाण एक नवकार का कायोत्सर्ग 'नमो अरिहंताणं' कहकर कायोत्सर्ग पारकर अधिकृत चैत्य (मूलनायक या अन्य किसी जिनेश्वर परमात्मा) की अध्रुव स्तुति। लोगस्स-सव्व लोए अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तियाए० अन्नत्थ., एक नवकार का काउस्सग्ग, कायोत्सर्ग पारकर सर्व जिन सम्बन्धित ध्रुव स्तुति (दुसरी) । पुक्खरवरदी-सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तियाए, अन्नत्थ, एक नवकार का कायोत्सर्ग, कायोत्सर्ग पारकर श्रुत ज्ञान वंदना सम्बन्धित तीसरी स्तुति । सिद्धाणं बुद्धाणं- वेयावच्चगराणं, अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, कायोत्सर्ग पारकर अनुशास्ति नामक शासनदेव स्मरणार्थ चौथी स्तुति ।
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देववंदन विधि
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