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तत्पश्चात् नमुत्थुणं फिर चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव नामक चार दण्डक सूत्र पूर्वोक्त क्रम प्रमाण चार स्तुति कहने के पश्चात् नमुत्थुणं, जावंति चेइयाई, एक खमासमणा, जावंत केवि साहु, नमोऽर्हत्, स्तवन, जय वीयराय आभवमखण्डा तक (2 गाथा) तत्पश्चात् फिर से नमुत्थुणं ।
उत्कृष्ट देववंदन करने की यह खरतरगच्छ परम्परा की विधि है । प्र.1317 तपागच्छ परम्परानुसार उत्कृष्ट देववंदन विधि बताइये ।
इरि-नमुकार-नमुत्थण-रिहंत-थुइ-लोग-सव्वं-थुइ पुक्ख । थुइ-सिद्धा-वेया-थुइ-नमुत्थु-जावंति-थय-जयवी ॥ अर्थात् सर्वप्रथम एक खमासमणा देकर इरियावहिया, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ कहने के पश्चात् 25 श्वासोश्वास प्रमाण चंदेसु निम्मलयरा तक 1 लोगस्स का काउस्सग्ग, तत्पश्चात् प्रगट लोगस्स । तीन खमासमणा देकर संस्कृत / प्राकृत / हिन्दी । गुजराती भाषा का तीन या अधिक गाथा का चैत्यवंदन तत्पश्चात् जंकिंचि, नमुत्थुणं, तत्पश्चात् आभवमखंडा तक जयवीयराय तत्पश्चात् खमासमणा देकर चैत्यवंदन, जंकिंचि, नमुत्थुणं, अरिहंत, चेइयाणं अन्नत्थ सहित संपूर्ण चैत्यस्तव, फिर 8 श्वासोश्वास प्रमाण 1 नवकार का काउस्सग्ग, कायोत्सर्ग पारकर अधिकृत चैत्य या अन्य किसी जिनेश्वर परमात्मा की अध्रुव स्तुति । लोगस्स - सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तियाए अन्नत्थ, 1 नवकार का काउस्सग्ग 'नमो अरिहंताणं' से कायोत्सर्ग पारकर
सर्व जिन (ध्रुव) स्तुति कहना । चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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