Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 404
________________ लिए इन्द्र, इन्द्र ध्वज के माध्यम से अपनी तर्जनी अंगुली ऊँची करता वीतराग स्तव प्र. 4 श्लोक प्र.1405 अरिहंत परमात्मा की देशना कैसी होती है ? उ. चौमुखी। प्र.1406 परमात्मा मूल स्वरूप में किस दिशा में होते है ? उ.. पूर्व दिशा में। प्र.1407 समवसरण की तीन दिशाओं में कौन से देव परमात्मा के प्रतिबिम्ब स्थापित करते है ? उ... व्यंतर देव । प्र.1408 जब समस्त देवता मिलकर परमात्मा जैसा एक अंगुठा भी नहीं . विकुर्व सकते है फिर व्यंतर देव परमात्मा के तीन दिशाओं में तीन प्रतिबिम्ब कैसे बनाते है ? यद्यपि समस्त देवता मिलकर भी परमात्मा के एक अंगुठे की रचना नहीं कर सकते है, फिर भी परमात्मा के अचिन्त्य तीर्थंकर नामकर्म रूप महापुण्य के प्रभाव से ही, एक ही देवता में परमात्मा के तीन रूप रचने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। जे ते देवहिं कया, तिदिसि पडिरूवगा तस्स । तेसिपि तप्पभावा, तयाणु रूवं हवइ रूवं ॥ . विशेषावश्यक भाष्य भाग 2 गाथा 447, आव. मलय. नियुक्ति 557 तीन रूपों की रचना यद्यपि देवता ही करते है पर अतिशय (प्रभाव) तो तीर्थंकर परमात्मा का स्वयं का ही होता है । टीका में 'तप्प भाव' का अर्थ तीर्थंकर का प्रभाव ऐसा किया है। ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी . . 389. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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