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इस पर्षदा में यदि कोई महर्द्धिक आता है तो उससे पूर्व बैठे अल्पऋद्धिवाले उन्हें नमन करते है और जाते समय भी अल्प ऋद्धि वाले महर्द्धिक वालों को नमन करके जाते है । लो. प्र. स. 30 गा. 423-37 उपरोक्त कथित बारह पर्षदा में से चार प्रकार ( निकाय) की देवियाँ (वैमानिक, भवनपति, व्यंतर और ज्योतिष देवियाँ ) और साध्वीजी भगवंत ये पांच पर्षदा समवसरण में खड़े-खड़े ही परमात्मा की देशना का श्रवण करती है, शेष सात पर्षदा (चार निकाय के देव, मनुष्य पुरुष और स्त्री) बैठे-बैठे देशना सुनती है । आवश्यक वृत्ति आवश्यक चूर्णि के अनुसार साधु भगवंत उत्कटिकासन में और वैमानिक देवीया और साध्वीजी नामक दो पर्षदा खड़े-खड़े परमात्मा की वाणी का श्रवण करती है
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प्र. 1418 बलि तैयार कौन करवाते है ?
उ.
परमात्मा की देशना श्रवण करने आये चक्रवर्ती आदि अग्रिम राजा अथवा श्रावक या अमात्य, इनकी अनुपस्थिति में नगरजन या देशवासी अद्भुत बलि तैयार करवाते है लो.प्र. स. 30 गा. 954-955
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प्र. 1419 बलि कैसे तैयार किया जाता है ?
उ. उज्ज्वल वर्ण वाले, उत्कट सुगंध से युक्त, पतले, अत्यन्त कोमल, दूर्बल स्त्री द्वारा कुटे (खांडेला), पवित्र बलवती स्त्री द्वारा फोतरा रहित किये, ऐसे अखण्ड अणीशुद्ध चार प्रस्थ कलमशाली चावलों को सर्व प्रथम शुद्ध पानी से धोकर उन्हें अर्ध पक्व (पूरे पक्के नहीं) किया जाता है । फिर उन अर्ध पक्व चावलों को रत्नों के थाल में डाला जाता है। सोलह श्रृंगार से सुसज्जित सौभाग्यवती स्त्री उस थाल को अपने सिर
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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