Book Title: Chaityavandan Bhashya Prashnottari
Author(s): Vignanjanashreeji
Publisher: Jinkantisagarsuri Smarak Trust

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Page 410
________________ 1423 बलि का शेष एक चौथाई भाग किसे मिलता है ? जिसके सद्भाग्य में होता है उन सर्व लोक के प्राणियों को मिलता है । . 1424 बलि के एक कण का कितना महत्त्व है ? 1. जैसे बरसात की बुंद के गिरने से अग्नि शांत होती है, वैसे ही बलि के एक कण को सिर पर रखने से सर्व रोग शान्त हो जाते है । 2. छ: मास पर्यन्त तक कोई नया रोग उत्पन्न नही होता है । 1425 परमात्मा का निर्वाण महोत्सव इन्द्रादि देवता कैसे मनाते है ? इन्द्र देवता जैसे ही परमात्मा के निर्वाण के समाचार सुनते उसी पल दो कदम आगे बढ़कर जिस दिशा में परमात्मा का पार्थिव शरीर होता है उस दिशा की ओर मुख करके परमात्मा को भाव वंदन करते है । इन्द्र महाराजा अपने सामानिक आदि समस्त देवताओं के साथ दिव्य गति से उस स्थान पर पहुंचते है, जहाँ पर परमात्मा का निर्वाण हुआ है। बहते अश्रुधारा के साथ सर्वप्रथम परमात्मा के देह की तीन प्रदक्षिणा देते है । तत्पश्चात् कुछ दूरी पर खड़े होकर विलाप करते हुए परमात्मा को उपालंभ देते है । बहती अश्रुधार के साथ शक्रन्द्र अपने आभियोगिक देवताओं से नंदनवन से गोशीर्ष -चंदन के काष्ठ मंगवाते है। पूर्व दिशा में परमात्मा हेतु गोल चिता का निर्माण करते है । क्षीर समुद्र के जल से परमात्मा के शरीर को स्नान करवाने के पश्चात् परमात्मा के शरीर पर गोशीर्ष - चंदन का विलेपन करते है । भक्ति भाव से ओत-प्रोत होकर इन्द्र महाराजा हंस चित्रित उत्तम वस्त्र और सर्व अलंकारों से परमात्मा के शरीर को अलंकृत करते है । स्वयं इन्द्र महाराजा परमात्मा के शरीर को देव निर्मित शिबिका में पधराते है । इन्द्र 1 चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी Jain Education International For Personal & Private Use Only 395 www.jainelibrary.org

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