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पुक्खरवरदी - सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदण वत्तिया - अन्नत्थ, एक नवकार का काउस्सग्ग, कायोत्सर्ग पारकर श्रुतज्ञान वंदन सम्बन्धित तीसरी स्तुति ।
सिद्धाणं बुद्धाणं - वेयावच्चगराणं, तत्पश्चात् अन्नत्थ., एक नवकार का काउस्सग्ग, कायोत्सर्ग पारकर शासनदेव स्मरणार्थ चौथी अनुशास्ति स्तुति कहना ।
तत्पश्चात् नमुत्थुणं फिर चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव, सिद्धस्तव नामक चार दण्डक पूर्वोक्त क्रम प्रमाण चार स्तुति कहने के पश्चात नमुत्थुण जावंति चेइआई एक खमासमणा जावंत केवि साहू, नमोऽर्हत् स्तवन जय वीयराय (दो गाथा) तत्पश्चात् खमासमणा देकर चैत्यवंदन जंकिंचि, नमुत्थणं, बोलकर संपूर्ण जयवीयराय 5 गाथा कहना ।
भाष्य में प्रथम, अंतिम चैत्यवंदन और नर्मुत्थुणं नहीं कहे हैं, किन पंच प्रतिक्रमण सार्थ में उपरोक्त विधि बताई गई है। वर्तमान में भी पां नमुत्थुणं वाली उपरोक्त विधि ही देववंदन में प्रचलित है.
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देववंदन
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