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उ.
उ. सशक्त, जवान, बलिष्ठ, अति सक्रिय इन्द्रियों वाले अपराधी साधु को
तप प्रायश्चित्त दिया जाता है। प्र.1081 'छेद प्रायश्चित्त' किसे कहते है ?
महाव्रत का घात होने पर अमुक प्रमाण से दीक्षा काल का छेद (कम) करना, घटाना छेद प्रायश्चित्त है । जैसे-शरीर का कोई अंग सड जाता है, तो शेष शरीर के रक्षार्थ सड़े अंग को काटकर फेंक दिया जाता है,
वैसे ही दोष के अनुपात में चारित्र पर्याय का छेदन कर शेष पर्याय की
रक्षा करना, छेद प्रायश्चित्त है। प्र.1082 छेद प्रायश्चित्त किन-किन को दिया जाता है ? उ. तप के प्रति अरुचि भाव वाले, निष्कारण अपवाद सेवन करने वाले,
ग्लान -बाल या वृद्ध, जो दोषों का शुद्धिकरण तप से करने में असमर्थ होते है और तपाभिमानी ऐसे बलिष्ट साधुओं को छेद प्रायश्चित्त दिया
जाता है। प्र.1083 'मूल प्रायश्चित्त' किसे कहते है ? उ. महा अपराध होने पर पुनः व्रतों का आरोपण करना, अर्थात् जिसका
सम्पूर्ण चारित्र दूषित हो चुका है, उसकी सम्पूर्ण पर्याय का छेदन कर
पुनः दीक्षा देना, मूल प्रायश्चित्त है। प्र.1084. मूल प्रायश्चित्त किनको दिया जाता है ? उ. 1. मूल प्रायश्चित्त निर्दयतापूर्वक अथवा माया पूर्वक बारम्बार जीव हिंसा,
सहर्ष असत्य भाषण, चोरी, मैथुन या परिग्रह रुप पाप सेवन करने वालों
को मूल प्रायश्चित्त दिया जाता है। 2. उद्धगमादि दोषों से युक्त आहार, उपकरण, वसति आदि को ग्रहण करने
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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