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निविष्ट कायोत्सर्ग कहते है क्योंकि इसमें साधक शरीर से बैठा है और भावों के परिणाम से भी वह उत्थानशील नहीं है अर्थात् कायोत्सर्ग में साधक शरीर और आत्मा दोनों से बैठा है ।
प्र.1226 उपरोक्त चारों कायोत्सर्ग में कौनसे कायोत्सर्ग हेय और उपादेय है ? उत्थित-उत्थित, उपवष्टि - उत्थित नामक ये दो कायोत्सर्ग उपादेय है और उत्थित- निविष्ट कायोत्सर्ग हेय है । जबकि उपविष्ट - निविष्ट नामक कायोत्सर्ग वास्तव में कायोत्सर्ग नहीं बल्कि कायोत्सर्ग का दम्भ मात्र है। प्र.1227 आवश्यक निर्युक्ति में आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने कायोत्सर्ग के
कितने भेद बताये है ?
उ.
क्र.सं. कायोत्सर्ग का नाम
1.
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324
उत्सृत - उत्सृत
उत्सृत
उत्सृत-निषण्ण
निषण्ण-उत्सृत
निषण्ण
निषण्ण-निषण्ण
निषण्ण-उत्सृत
निषण्ण
निषण्ण-निषण्ण
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शारीरिक दशा
खड़ा
खड़ा
खड़ा
बैठा
बैठा
बैठा
लेटा
टा
मानसिक विचारधारा
धर्मध्यान- शुक्लध्यान |
न धर्म - शुक्लध्यान, न
आर्त्-रौद्रध्यान अर्थात्
चिन्तन शुन्य दशा ।
आर्त- रौद्रध्यान ।
धर्म - शुक्लध्यान ।
चिंतन शुन्य दशा
आर्त- रौद्रध्यान ।
धर्म - शुक्लध्यान ।
चिन्तन शून्य ।
आर्त-रौद्रध्यान ।
बीसवाँ कायोत्सर्ग द्वार
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