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प्रतिक्रमणादि में आठ श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग होता है ।
प्र. 1246 उद्देश से क्या तात्पर्य है ?
उ.
उद्देश अर्थात् सूत्र पढ़ने की प्रवृत्ति, योगोद्वहन पूर्वक अमुक सूत्र पढने
की गुर्वाज्ञा ।
सर्वप्रथम शास्त्र पढने के लिए शिष्य गुरू म. से आज्ञा मांगता है । तब गुरू म. उपदेश या प्रेरणा देते है, मार्गदर्शन करते है । शास्त्र पाठ पठन की विधि बतलाते है, यह उद्देश कहा जाता है ।
उ.
प्र. 1247 समुद्देश से क्या तात्पर्य है ?
ਤ
पढे
हुए सूत्र को स्थिर एवं स्वनामवत् परिचित करना अर्थात् उसी सूत्र को स्थिर एवं परिचित करने की गुर्वाज्ञा ।
पढे हुए आगम का, श्रुतज्ञान का उच्चारण कैसे करना, कब करना उसके हीनाक्षर आदि दोषों का परिहार करके बार - बार स्वाध्याय की प्रेरणा देना, ताकि पढा हुआ श्रुतज्ञान स्थिर रह सके, यह समुद्देश है ।
प्र.1248 अनुज्ञा संपादन से क्या तात्पर्य है ?
उ. सूत्र का सम्यग् धारण एवं अन्यों में विनियोग करने हेतु वाचनाचार्य की आशीर्वाद युक्त अनुज्ञा प्राप्त करना अर्थात् सूत्र का सम्यग् धारण एवं दूसरों को पढाने की गुर्वाज्ञा ।
प्र. 1249. अनुयोग से क्या तात्पर्य है ?
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निययाणुकूलो जोगो सुत्तत्थस्स जो य अणुओगो । सुत्तं च अणु तेण जोगो अत्थस्स अणुओगो || वृत्ति पत्र 7 सूत्र अणुरुप अर्थात् संक्षिप्त होता है और अर्थ विस्तृत होता है । एक सूत्र के अनेक अर्थ हो सकते है । कहाँ कौनसा अर्थ उपयुक्त है, इसका
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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