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उ.5 श्रावक को अहोरात्र में सात, छ:, पांच, चार, और कम से कम तीन
चैत्यवंदन करने का विधान है। प्र.1298 श्रावक के सात चैत्यवंदन अहोरात्र में कैसे होते है ? उ.6 प्रातः (राइय) प्रतिक्रमण में दो (जयउ सामिय, परसमय तिमिर
तरणि) चैत्यवंदन खरतरगच्छ परम्परानुसार । (जग चिंतामणी, विशाल लोचन) चैत्यवंदन तपागच्छ परम्परानुसार । त्रिकाल देववंदन में तीन चैत्यवंदन ।
दैवसिक प्रतिक्रमण में एक चैत्यवंदन (जयतिहुअण ख.ग.प.) (नमोऽस्तु वर्धमानाय त.ग.प.)। संथारा पोरसी का एक चैत्यवंदन (चउक्चसाय)। दोनों समय प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक, साधु के समान सात चैत्यवंदन
अहोरात्र में करता है। प्र.1299 राइय प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक अहोरात्र में कितने चैत्यवंदन
करता है ? . मात्र राइय प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक अहोरात्र में छ: चैत्यवंदन करता है - प्रातः प्रतिक्रमण के दो चैत्यवंदन, त्रिकाल देववंदन के तीन
चैत्यवंदन, रात्रि संथारा पोरसी का एक चैत्यवंदन, इस प्रकार से राइय संथारा भणने वाले श्रावक दिन-रात में कुल छः चैत्यवंदन करता है,
रात्रि संथारा नही भणने वाला पांच चैत्यवंदन करता है। प्र.1300 मात्र दैवसिक प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक के अहोरात्र में कुल
कितने चैत्यवंदन होते है ? उ. मात्र दैवसिक प्रतिक्रमण करने वाले श्रावक के अहोरात्र में कुल चार
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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