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अथवा पांच चैत्यवंदन होते है। त्रिकाल देववंदन के तीन चैत्यवंदन, दैवसिक प्रतिक्रमण का एक चैत्यवंदन, रात्रि संथारा पोरसी का एक चैत्यवंदन । रात्रि संथारा भणता (पढता) है तो पांच चैत्यवंदन अन्यथा
चार चैत्यवंदन होते है। प्र.1301 जघन्य से श्रावक को दिन-रात में कुल कितने चैत्यवंदन करने
चाहिए ? जघन्य से श्रावक को त्रिकाल चैत्यवंदन (देववंदन) अहोरात्र में अवश्यमेव करने चाहिए ।
उ .
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तैवीसवाँ चैत्यवंदन प्रमाण द्वार
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