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प्र. 1290 जिन्हें अर्थ का ज्ञान ही नही है वे स्तुति स्तोत्र के अर्थ का चिन्तन कैसे कर सकते है और उनके मन-मानस में शुभ परिणाम कैसे उत्पन्न हो सकते है ?
उ.
मणिरत्न में बुखार आदि रोगों को दूर करने का सामर्थ्य होता है, पर रोगीं यह नही जानता कि उसका बुखार आदि रोग मणिरत्न से दूर (शांत) हुआ है। अज्ञात होने पर भी मणिरत्न रोगी के रोग को शांत करता है, वैसे ही स्तुति, स्तोत्र के अर्थ का ज्ञान न होने पर भी बोलते ही मनमानस में प्रायः शुभ परिणाम उत्पन्न होते है ।
प्र.1291 जिनयात्रा (तीर्थयात्रा ) में कैसे स्तवन बोलने चाहिए ? उ. थुइ थौता पुण उचिया, गंभीर पयत्थ विरइ या जे उ ।
संवेग वुड्डि जणंना, सभा य पाएण सव्वेसि ।
अर्थात् सूक्ष्म बुद्धि से जान सके, गंभीर भाव पूर्वक रचना की हो, संवेग वर्धक - मोक्ष की अभिलाषा बढाने वाले और प्राय: कर बोलने वाले, सभी को समझ में आ सके, इस प्रकार की योग्य स्तुति, स्तोत्र मधुर स्वर से जिन यात्रा में बोलने चाहिए ।
प्र.1292 महास्तोत्र कैसा होना चाहिए ?
उ. 1. सर्वसार- यानि सभी स्तोत्र में सारभूत अर्थात् एकान्ततः सारभूत शब्द अर्थवाले, प्रबल भाव वृद्धि के कारक (प्रेरक) होने चाहिए । 2. यथाभूत - परमात्मा के वास्तविक स्वरुप एवं गुणों से युक्त होना . चाहिए, काल्पनिक नही ।
3. अन्यासाधारणगुण संगत अन्य प्राणियों एवं कल्पित ईश्वरादि में न हो, ऐसे असाधारण गुणों से युक्त एवं स्तोत्र विशिष्ट काव्यालङ्कारों
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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