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4.
से सुशोभित होने चाहिए ।
उच्च उत्कृष्ट गम्भीर शब्दों से गुम्फित, अशोभनीय अलङ्कार उपमादि
से रहित ।
5. दूसरों को सुनकर भगवत् प्रशंसा - धर्मप्रशंसा रुप धर्मबीज आदि की
प्राप्ति हो, ऐसे सर्वज्ञ श्री जिनेन्द्र देव प्रणीत शासन के प्रभावनाका
होने चाहिए ।
6. रागद्वेष स्वरुप आभ्यन्तर विष का नाश करने के लिए श्रेष्ठ मंत्र समान महास्तोत्र होने चाहिए ।
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बावीसवाँ स्तवन द्वार
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