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परमात्मन् गुणों से युक्त है, ऐसी जिन प्रतिमा के स्वरुप का स्तवन (कीर्तन) करना, स्थापना स्तवन है। परमात्मा के बिम्ब / प्रतिमा के
स्तवन को, स्थापना स्तव कहते है। प्र.1281 द्रव्य स्तव किसे कहते है ? ___ जो अशेष वेदनाओं से रहित है, स्वस्तिकादि चौसठ लक्षणों से युक्त है,
संस्थान व शुभ संहनन से युक्त है, सुवर्ण दण्ड से युक्त, चौसठ गुरभि चामरों से सुशोभित है तथा जिनका वर्ण शुभ है, ऐसे चौबीस तीर्थंकर परमात्मा के शरीर के स्वरुप का अनुसरण (चिंतन) करते हुए उनका कीर्तन करना, द्रव्य स्तव कहलाता है। आचार्य, उपाध्याय और
साधुओं के शरीर स्तवन को द्रव्य स्तव कहते है। प्र.1282 भाव स्तव से क्या तात्पर्य है ? उ. तीर्थंकर परमात्मा के अनंत ज्ञान, दर्शन, वीर्य और सुख, क्षायिक
सम्यक्त्व, अव्याबाध और विरागता आदि गुणों के अनुसरण करने की प्ररुपणा करना, भाव स्तव है।
अन.ध. 18/39-44 प्र.1283 क्षेत्र स्तव किसे कहते है ? उ. तीर्थंकर परमात्मा के गर्भ (च्यवन), जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान आदि
कल्याणक भूमि और परमात्मा की विचरण भूमि - नगर, गाँव, पर्वत
आदि स्थानों के स्तवन (स्तुति) को क्षेत्र स्तव कहते है। प्र.1284 कौनसे स्तवन को काल स्तव कहते है ? उ. परमात्मा के जन्म, दीक्षा आदि पंच कल्याणकों एवं तप, जप आदि किसी
महत्त्वपूर्ण घटना, समय के स्तवन को काल स्तव कहते है। प्र.1285 स्तव और स्तोत्र में क्या अन्तर है ?
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बावीसवा स्तवन द्वार
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