________________
अस्खलितादि गुण युतैः स्तोत्रैश्च महामतिग्रथितैः । 9/7'
षोडषक प्रकरण भाग-2 1. परमात्मा के शारीरिक गुणों का सूचक 2. गंभीर 3. विविध वर्ण संयुक्त 4. भाव विशुद्धि का कारण 5. संवेग परायण 6. पवित्र 7.अपने पाप निवेदन से युक्त (पाप गर्दा गर्भित) 8. प्रणिधान पुरस्सर 9. विचित्र
अर्थ युक्त 10. अस्खलितादि गुण युक्त 11. महान् बुद्धिशाली कवि द्वारा रचित अर्थ गर्भित स्तोत्र, स्तवन द्वारा परमात्मा की स्तुति करनी चाहिए। 1. परमात्मा के शारिरिक गुणों का सूचक - 'शरीरं अष्टोत्तर लक्षण
सहस्रलक्षितं, क्रिया सर्वातिशायि दुर्वार परिषह' परमात्मा का शरीर जो 1008 लक्षणों से युक्त होता है, उन गुणों की स्तुति करना । जैसे'छत्त-चामर-पडाग ...... चक्कवरंकिया ॥' अजियशांति गा. 32 श्री अजितनाथ परमात्मा और शांतिनाथ परमात्मा जो छत्र-चंवर पताका, स्तम्भ, यव, श्रेष्ठ ध्वज, मकर (घडियाल), अश्व, श्रीवत्स, द्वीप, समुद्र, मंदर पर्वत और ऐरावत हाथी आदि के शुभ लक्षणों
से शोभित हो रहे है। 2. गंभीर- 'सुक्ष्ममतिगम्यारिति' सुक्ष्म बुद्धि से जान सकें, ऐसे अर्थों
से युक्त स्तवन द्वारा परमात्मा की स्तुति करनी चाहिए । जैसे'येयोऽलोलो लुलायी यां लीलयाऽयी ललौ ययुः । ययुया ये ययायाये यायऽऽयो यालयोऽप्यलम् ।'
पुण्यरत्न सूरिकृत द्विवर्ण रत्न मालिका प्रभृति स्तोत्रैः । 3. विविध वर्ण संयुक्त- ‘च्छन्दोऽलङ्कारभङ्ग्या' अर्थात् अनेक छंद, ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
बावीसवाँ स्तवन द्वार
350
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org