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ज्ञानी की आशातना करना आदि सम्यग्ज्ञान के शल्य है । प्र.1115 सम्यग्चारित्र शल्य से क्या तात्पर्य है ? उ. समिति और गुप्तियों के प्रति अनादर भाव रखना, चारित्र शल्य है । प्र.1116 योग शल्य से क्या तात्पर्य है ? उ. असंयम में प्रवृत्त होना, योग शल्य है। प्र.1117 अन्य प्रकार से भाव शल्य के भेदों के नाम बताइये ? उ. तीन भेद- 1. माया शल्य 2. नियाण शल्य 3. मिच्छा दंसण शल्य । प्र.1118 माया शल्य से क्या तात्पर्य है ?
माया अर्थात् कपट, प्रपंच, छल । माया एक तीक्ष्ण धारवाली ऐसी तलवार है, जो आपसी स्नेह सम्बन्ध को क्षण मात्र में काट देती है। दशवैकालिक सूत्र में कहा - 'माया मित्ताणी नासेइ' अर्थात् मायाचार
से मैत्रीभाव का विनाश होता है। प्र.1119 निदान शल्य किसे कहते है ?
निदान यानि निश्चय रुप से यथेष्ट प्राप्ति की आकांक्षा । धर्माचरण से सांसारिक फल की कामना करना, भोगों की लालसा रखना अर्थात् आराधना करके आराधना के फल (पुण्य) को संसार के भोगों को पाने
हेतु मिट्टी के भाव बेच देना, निदान शल्य है। प्र.1120 . मिथ्या दर्शन शल्य किसे कहते है ?
सत्य पर श्रद्धा न.रखना, असत्य का कदाग्रह रखना, मिथ्यादर्शन शल्य है। निश्चय से आत्म- स्वरुप के अनुभव को नाश करने वाले आत्मा
के परिणाम-मिथ्यात्व शल्य है। प्र.1121 अध्यात्म क्षेत्र में माया, निदान व मिथ्या दर्शन को शल्य क्यों कहा
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी ।
उ.
निदान या
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