________________
ध्यान व शुक्ल ध्यान में लीन होना, मन में शुभ भावनाओं का प्रवाह बहाना, आत्मा को शुद्ध मूल स्वरुप में प्रतिष्ठित करना, भाव कायोत्सर्ग है ।
प्र.1204 उत्तराध्ययन सूत्रानुसार समस्त दुःखों का हर्ता कौन है ? उ. भाव कायोत्सर्ग समस्त दुःखों का हर्ता है।
प्र.1205 भाव कायोत्सर्ग में किसका व्युत्सर्ग किया जाता है ?
उ. निम्न तीन का - 1. कषाय - व्युत्सर्ग 2. संसार - व्युत्सर्ग 3. कर्म - व्युत्सर्ग। प्र.1206 संसार व्युत्सर्ग से क्या तात्पर्य है ?
उ. आचारांग में कहा- “जे गुणे से आवट्ठे " जो इन्द्रिय के विषय है, वे ही वस्तुतः संसार है । संसार परिभ्रमण के जो मूलकारण - मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग है, उसका त्याग करना ही संसार व्युत्सर्ग है।
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार प्रकार के संसार का त्याग करना, संसार व्युत्सर्ग है ।
प्र.1207 कर्म व्युत्सर्ग किसे कहते है ?
. उ.
अष्ट कर्मों को नष्ट करने के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है, उसे कर्म सकते है ।
प्र. 1208 कषाय व्युत्सर्ग किसे कहते है ?
उ.
. क्रोध, मान, माया और लोभ इन चारों कषायों का परिहार (त्याग) करना, कषाय व्युत्सर्ग कहलाता है। क्रोध को क्षमा से, मान को विनय से, माया को सरलता से, लोभ को सन्तोष से जीतना ।
प्र.1209 प्रयोजन की दृष्टि से कायोत्सर्ग कितने प्रकार का होता है ? उ. 'सो उस्सग्गो दुविहो चिट्ठाए अभिभवे य नायव्वो ।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
319
www.jainelibrary.org