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भिक्खायरियाइ पढमो, उवसग्गऽमिडंजणे बीओ ॥'
आ.नि.गाथा 1452 दो प्रकार- 1. चेष्टा कायोत्सर्ग 2. अभिभव कायोत्सर्ग । प्र.1210 चेष्टा कायोत्सर्ग से क्या तात्पर्य है ? .
भिक्षाचर्या, गमनागमनादि क्रिया में जो दोष लगता है उस पाप से निवृत होने के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है, उसे चेष्टा कायोत्सर्ग कहते
प्र.1211 चेष्टा कायोत्सर्ग किन दोषों की विशुद्धि के लिए किया जाता है ? उ. 'भिक्खायरियाए पढमो' अर्थात् भिक्षा, शौच, निद्रा, ग्रन्थ के आरम्भ
करते समय व पूर्ण हो जाने पर, गमनागमन आदि प्रवृति में लगे दोषों
की विशुद्धि हेतु, चेष्टा कायोत्सर्ग किया जाता है । प्र.1212 अभिभव कायोत्सर्ग से क्या तात्पर्य है ? उ. हूण आदि से पराजित होकर जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह अभिभव
कायोत्सर्ग कहलाता है। प्र.1213 अभिभव कायोत्सर्ग किस हेतु से किन परिस्थितियों में किया जाता
उ.
मन को एकाग्र कर आत्म विशुद्धि हेतु, दानव आदि कृत उपसर्ग के निवारण हेतु, एक रात्रिक प्रतिमा (अभिग्रह युक्त ध्यानावस्था या मरणान्त उपद्रव विशेष) में किया जाता है और संकट की स्थितियों जैसे
विप्लव, अग्निकांड, दुर्भिक्ष आदि परिस्थितियों में किया जाता है । प्र.1214 कायोत्सर्ग कर्ता में कौन-कौन से लक्षण होने चाहिए ? उ. जो देह को अचेतन, नश्वर व कर्म निर्मित समझकर उसके पोषण हेतु कोई कार्य नही करता हो ।
यो.सा./अ./5/52 ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
बीसवाँ कायोत्सर्ग द्वार
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