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ऐसा क्यों कहा, यद्यपि दोनों की क्रिया में कोइ भेद नही है ? .. उ. पहले 'करेमि काउस्सग्गं' अर्थात् कायोत्सर्ग करता हूँ, इस कथन से क्रिया . .
की सन्मुखता व्यक्त की गई है। जबकि 'ठामि काउस्सग्गं" कथन से प्रतिपति अर्थात् कायोत्सर्ग का प्रारंभ दिखलाते है। क्रिया का प्रारंभ बहुत नजदीक होने के कारण 'ठामि' कहा है अतः क्रिया काल व निष्ठाकाल
की अपेक्षा से अलग-अलग कहा है। प्र.1149 'ठामि काउस्सग्गं' का अर्थ कायोत्सर्ग में रहने का है, जबकि अभी
तो अन्नत्थ सूत्र पढना बाकी है, तब फिर पूर्व में कायोत्सर्ग में रहता हूँ (ठामि काउस्सग्गं) ऐसा कहना कहाँ तक उचित है? . क्रियाकाल (प्रारंभ का काल) एवं निष्ठाकाल (समाप्ति काल) दोनों में : कथंचिद् अभेद होता है - निश्चय नय की अपेक्षा से दोनों एक है, इसलिए यहाँ 'ठामि' कहना असङ्गत (अनुचित) नहीं हैं । निश्चय नय की मान्यता है कि जो क्रियाकाल को प्राप्त हुआ है (कार्य करना प्रारंभ हुआ है), वह वहाँ उतने अंश में कृत हुआ अर्थात् निष्ठित (समाप्त) हुआ ऐसा समझना चाहिए। यदि ऐसा उस समय न माना जाए, बल्कि क्रिया की समाप्ति के बाद माना जाय, तो क्रिया समाप्त होने के समय भी, क्रिया के अप्रारंभकाल में जैसा निष्ठित नही है, उस प्रकार का निष्ठित नही होगा । कारण - क्रिया निवृत्ति एवं क्रिया अनारम्भ दोनों समय में क्रिया का अभाव समान है। अर्थात् जब कायोत्सर्ग करना प्रारंभ कर रहा है, उस समय हम उसे नही कर रहे है ऐसा कहते है तो फिर
कायोत्सर्ग समाप्ति के समय तो कायोत्सर्ग पूर्ण हो चुका है, फिर उसे ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ 302
अट्ठारहवा हेतु द्वार
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