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प्र.1016 द्रव्य जिन किसे कहते है ? उ. जो भविष्य में तीर्थंकर होने वाले (तीर्थंकर नामकर्म निकाचित) है, ऐसे
तीर्थंकर परमात्मा का जीव और जो निर्वाण (मोक्ष) को प्राप्त हो चूके है, वे 'द्रव्य अरिहंत' कहलाते है । अर्थात् तीर्थंकर नामकर्म के बन्धन (निकाचित) से लेकर केवल ज्ञान प्राप्ति से पूर्व की समस्त अवस्था और सिद्धावस्था अर्थात् भाव अरिहंत की पूर्व और पश्चात् की दोनों अवस्था
'द्रव्य अरिहंत' कहलाती है। प्र.1017 भाव जिन से क्या तात्पर्य है ? उ. अष्टमहाप्रातिहार्य समृद्धि से युक्त अरिहंत (तीर्थंकर) भगवंत "भाव जिन"
कहलाते है । अर्थात् केवलज्ञान प्राप्ति से लेकर (तीर्थंकर नामकर्म के रसोदय को भोगनेवाली अवस्था) मोक्षगमन के पूर्व तक की अवस्था भाव
जिन कहलाती है। प्र.1018 समवसरण में विराजित परमात्मा ही भाव जिन कहलाते है ऐसा . भाष्यकार ने क्यों कहा? उ.. · अन्य केवली भगवंतों का इसमें समावेश न हो, क्योंकि समस्त केवली
तीर्थंकर परमात्मा नही होते है। जो तीर्थ की स्थापना करते है, समवसरण
में विराजित होते है, वे ही भाव जिन कहलाते है। प्र.1019 भाव निक्षेप को परिभाषित करते हुए उनके प्रकारों का उल्लेख . कीजिए? उ. “वर्तमान तत्पर्यायोपलक्षितं द्रव्यं भावः" वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को भाव कहते है।
(रा.वा. 1/5/8/29/12) 'विवक्षित क्रिया परिणतो भावः,' अर्थात् विवक्षित क्रिया में परिणत
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++ चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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