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प्र.1045 'पूअणवत्तियाए' का कायोत्सर्ग किस निमित्त से किया जाता है ?
'पूअणवत्तियाए' यानि पूजन के लिए । परमात्मा की सुगन्धित चंदनकस्तुरी-केसरादि पदार्थों, पुष्पमाला आदि से अर्चना करने से जो लाभ प्राप्त होता है, उस लाभ की प्राप्ति के उद्देश्य से यह कायोत्सर्ग किया
जाता है। प्र.1046 'सक्कारवत्तियाए' का कायोत्सर्ग किस निमित्त से किया जाता है ? उ. श्रेष्ठ वस्त्रालंकार आदि से जिनेश्वर परमात्मा का पूजन करना, सत्कार
कहलाता है । तथारुप सत्कार के लिए कायोत्सर्ग करना। . . प्रभु को आभुषण चढाने आदि सत्कार करने से जो लाभ प्राप्त होता है,
वह लाभ 'सक्कारवत्तियाए' के निमित्त कायोत्सर्ग करने से प्राप्त हो। प्र.1047 'सम्माणवत्तियाए' का कायोत्सर्ग किस निमित्त से किया जाता है ? उ. . चैत्य के सम्मान अर्थात् परमात्मा की स्तुति-स्तवना करने से जो कर्मक्षय
होते है, उन कर्मक्षय से प्राप्त पुण्य के लाभार्थ कायोत्सर्ग किया जाता है। प्र.1048 पूजन व सत्कार के निमित्त कायोत्सर्ग कौन कर सकते है ? उ. साधु-साध्वी भगवंत और श्रावक-श्राविका वर्ग, चारों ही कायोत्सर्ग कर
सकते है। प्र.1049 साधु भगवंत को द्रव्य स्तव का निषेध है कहा है 'कसिणसंजम
विउ पुष्फाईयं न इच्छंति' फिर पुष्पादि द्रव्य स्तव के निमित्त साधु
भगवंत कायोत्सर्ग कैसे कर सकता है ? उ. . साधु भगवंत को स्वयं पूजन व सत्कार करने का द्रव्य स्तव की अपेक्षा
से निषेध है, लेकिन सामान्यतः द्रव्य स्तव मात्र का निषेध नहीं है। पंच
वस्तुक में कहा है++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
सत्रहवा निमित्त द्वार
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