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प्र.1063 प्रायश्चित्त से क्या तात्पर्य है ? उ. प्रायः+चित्त; प्रायः - पाप, चित्त - उसकी शुद्धि करना ।
कृत पापों की शुद्धि करना, प्रायश्चित्त है। 'जीव शोधयति यत्-तत् प्रायश्चित्तम्' अर्थात् जो जीव को शुद्ध
बनाता है, वह प्रायश्चित है। प्र.1064 प्रायश्चित्त के प्रकारों का नामोल्लेख किजिए ?
प्रायश्चित्त के 10 प्रकार है - 1. आलोचना 2. प्रतिक्रमण 3. मिश्र 4. विवेक 5. व्युत्सर्ग 6. तप 7. छेद 8. मूल 9. अनवस्थाप्य 10. पारांचित ।
प्रवचन सारोद्धार द्वार 90 गाथा 750 1. आलोचना. 2. प्रतिक्रमण 3. तदुभय 4. विवेक 5. व्युत्सर्ग 6. तप 7. छेद 8. मूल 9. परिहार 10. श्रद्धान। मू.आ./362 1. आलोचना 2. प्रतिक्रमण 3. तदुभय 4. विवेक 5.. व्युत्सर्ग 6. तप
7. छेद 8. मूल 9. परिहार 10. उपस्थापन । त.स.9/22 प्र.1065 आलोचना प्रायश्चित्त से क्या तात्पर्य है ? उ. आलोचना; आ - मर्यादा पूर्वक, लोचना- प्रगट करना ।
एक बच्चे के समान माया और मद से विमुक्त होकर गुरू के समक्ष अपने पापों को प्रगट करना, आलोचना है। जो प्रायश्चित्त आलोचना मात्र से हो जाता है, वह प्रायश्चित्त भी कारण में कार्य के उपचार से आलोचना
कहलाता है। प्र.1066 किस प्रकार के अपराधों में आलोचना प्रायश्चित्त किया जाता है ? उ. 1 किसी कार्य के लिए सौ हाथ से अधिक गमनागमन करने पर गुरू
के समक्ष आलोचना प्रायश्चित्त किया जाता है।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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