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प्रतिक्रमण यानि दोषों से पीछे हटना । किये हुए पाप की पुनरावृत्ति नही करने का संकल्प करते हुए पूर्व कृत पाप (दोष) का 'मिच्छामि दुक्कडं ' देने मात्र से जो प्रायश्चित्त होता है, जिसकी गुरू के समक्ष आलोचना नही करनी पडती, वह प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त है ।
प्र. 1070 कौन से दोषों के लगने पर प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किया जाता है ?
उ.
पांच समिति व तीन गुप्ति (अष्ट प्रवचन माता) से सम्बन्धित दोष लगने पर प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त किया जाता है । जैसे -
उ.
I
1. ईर्यासमिति सम्बन्धित रास्ते में वार्तालाप करते हुए चलने से 2. भाषासमिति सम्बन्धित गृहस्थ की भाषा में या कर्कश स्वर में बोलने से ।
3. एषणासमिति सम्बन्धित- आहार पानी आदि की गवेषणा उपयोग पूर्वक न करने से ।
4. आदानभण्ड सम्बन्धित पूंजें प्रमार्जे बिना, वस्त्र पात्र आदि लेने या रखने से ।
5. उच्चार प्रस्रवण सम्बन्धित - अप्रत्युपेक्षित स्थंडिल में मात्रा आदि
परने से ।
6. मनोगुप्ति सम्बन्धित मन से किसी का बुरा चिंतन करने से ।
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चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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7. वचनगुप्ति सम्बन्धित - बुरा वचन बोलने से ।
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8. काय गुप्ति सम्बन्धित - विकथा करना, कषाय करना, शब्द रुप आदि विषयों की आसक्ति रखना, आचार्य आदि के प्रति द्वेष भाव रखना, उनके बीच-बीच में बोलना, दशविध समाचारी का सुचारु पालन न करना आदि दोषों का सहसा या अनाभोग से सेवन करने
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