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प्र.883 एक ही व्यक्ति में अरिहंत रुप की भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली ये
सम्पदाएं कैसे घटित होती है ? उ. एक ही व्यक्ति में अरिहंत रुप की भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली हेतु संपदा,
उपयोग संपदा आदि जैन दर्शन के अनेकांत के सिद्धांत से घटित होती है। जैन दर्शनानुसार प्रत्येक वस्तु अनंत धर्मात्मक होती है। इसी अनेकांत के सिद्धांत के अनुसार द्रव्यापेक्षा से वस्तु एक स्वभाव वाली होती है और पर्याय की अपेक्षा से अनेक स्वभाव वाली होती है । इसी प्रकार अरिहंत रुप एक व्यक्ति में भी भिन्न-भिन्न स्वभाव वाली पूर्वोक्त संपदाएं घटित होती है । अनेकांत के सिद्धांत से जैसे - एक व्यक्ति मां की अपेक्षा से पुत्र, पुत्र की अपेक्षा से पिता, बहन की अपेक्षा से भाई है। इस प्रकार पुत्र, पिता, भाई, मामा, दादा, नाना आदि अनेक गुण एक ही
व्यक्ति में घटित होते है। प्र.884 औपपातिक सूत्र और कल्प सूत्रादि में शक्रस्तव कहाँ तक है ? उ. "जिअभयाणं' तक शक्रस्तव का पाठ है ।
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शक्रस्तव की संपदा
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