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नाम दिया जा सकता है ।
3. 'मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवई मंगल' की संपदा को 'स्वरुप संपदा'
अथवा 'फल संपदा' नाम दिया जा सकता है ।
यह मात्र अनुमान है, तत्त्व तो केवली गम्य है ।
1. अरिहंत स्तोतव्य संपदा
नमो अरिहंताणं
2. सिद्ध स्तोतव्य संपदा
नमो सिद्धाणं
3. आचार्य स्तोतव्य संपदा
नमो आयरियाणं
4. उपाध्याय स्तोतव्य संपदा
नमो उवज्झायाणं
5. साधु स्तोतव्य संपदा
नमो लोए सव्व साहूणं
6. विशेष हेतु संपदा
एसो पंच नमुक्का
7. विशेष हेतु संपदा
सव्व पावप्पणासणो
8. स्वरुप संपदा / फल संपदा मंगलाणं च सव्वेसिं,
1 पद
1 पद
1 पद
1 पद
1 पद
1 पद
1 पद
1 पद
पढमं हवइ मंगलं
1 पद
नवकार मंत्र की प्रथम सात संपदा एक-एक पद की है और अंतिम आठवीं संपदा दो पद की है ।
चैत्यवंदन भाष्य प्रश्नोत्तरी
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